मल्टीपल स्क्लेरोसिस के साथ जीना: 3 बातें, जो मरीज़ों और उनके परिवारों को पता होनी चाहिए
०१/०१/०१ इनके द्वारा MSD मैनुअल

मल्टीपल स्क्लेरोसिस (MS) एक आम विकार है और इसका पता लगाने की प्रक्रिया जटिल और चुनौतीपूर्ण हो सकती है। MS एक ऑटोइम्यून रोग है, जो मस्तिष्क और स्पाइनल कॉर्ड को प्रभावित करता है। यह अप्रत्याशित होता है और इसे ठीक नहीं किया जा सकता। इसका हर मामला अलग होता है, जिससे इसकी पहचान और इसका इलाज कर पाना और भी मुश्किल हो जाता है।

इसके बावजूद MS अब उतना घातक नहीं है, जितना यह पहले हुआ करता था। इसके कई प्रभावी इलाज उपलब्ध हैं, जिनसे लोगों को इस रोग को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है। इस स्थिति के बारे में और जानकारी होने से MS से संबंधित तनाव और चिंता को कम करने में मदद मिल सकती है और मरीज़ अपने डॉक्टर से बातचीत करने के लिए तैयार हो सकते हैं। ये तीन बातें सभी को मालूम होनी चाहिए।

1. कई कारक MS होने की संभावना बढ़ाते हैं

आम तौर पर, मल्टीपल स्क्लेरोसिस 20 से 40 साल की उम्र में शुरू होता है, लेकिन यह 15 से 60 साल की उम्र में कभी भी शुरू हो सकता है। यह महिलाओं में कुछ अधिक सामान्य है। मल्टीपल स्क्लेरोसिस बच्चों में असामान्य है।

MS का कारण अज्ञात है, लेकिन इसके बारे में यह कहा जा सकता है कि यह उन लोगों को होता है, जो जीवन की शुरुआत में ऐसे किसी वायरस (शायद हर्पीज़ वायरस या रेट्रो वायरस) या किसी अज्ञात पदार्थ के संपर्क में आते हैं, जो किसी तरह प्रतिरक्षा प्रणाली को शरीर के अपने ऊतकों पर हमला करने के लिए ट्रिगर करता है। हाल ही में हुए एक शोध में सक्रिय सेवा दे रहे और MS से पीड़ित 955 सैन्य कर्मियों का अध्ययन किया गया और पाया गया कि एपस्टीन-बार वायरस नाम के एक प्रकार के हर्पीज़ वायरस के संक्रमण के बाद MS का जोखिम 32 गुना बढ़ जाता है।

इसमें आनुवांशिकी की भी भूमिका हो सकती है। किसी के माता-पिता या भाई-बहन के इस स्थिति में होने से उन्हें भी इस बीमारी के होने का जोखिम बढ़ जाता है। लोगों को एक और कारक ध्यान में रखना चाहिए और वह यह है कि आप कहाँ पले-बढ़े हैं। अधिक धूप वाली जलवायु वाले क्षेत्रों में MS कम होता है। शोधकर्ताओं का मानना है कि इस जोखिम कारक का संबंध धूप के संपर्क में रहने और विटामिन D से है। शरीर में विटामिन D की कम मात्रा होने पर जीवन के उत्तरार्ध में MS होने की संभावना दोगुनी हो जाती है। जीवन के उत्तरार्ध में शरीर में विटामिन D की मात्रा, MS होने की संभावना को प्रभावित नहीं करती है।

2. इसके संकेत और लक्षण अलग-अलग होते हैं – और वे अपने आप गायब भी हो सकते हैं

MS मस्तिष्क या स्पाइनल कॉर्ड के किसी भी हिस्से को प्रभावित कर सकता है और इसके लक्षण हर व्यक्ति में और हर दौरे में काफ़ी अलग-अलग हो सकते हैं। शुरुआती लक्षणों में शामिल हैं:

  • झुनझुनी, सुन्नता, दर्द, जलन, और हाथ, पैर, धड़, या चेहरे में खुजली और कभी-कभी स्पर्श की भावना कम होना
  • एक पैर या हाथ में ताकत या कार्यकुशलता की कमी, जो कठोर हो सकती है
  • नज़र से जुड़ी समस्याएं

लक्षण अक्सर बिना किसी पैटर्न या कारण के वापस लौटकर आते हैं (जिसे पुनरावर्तन कहा जाता है) और फिर कम हो जाते हैं (जिसे निवारण कहा जाता है)। MS का पता चलने से पहले, रोग के पुनरावर्तन और निवारण के साथ ये लक्षण महसूस होने पर मरीज़ भ्रमित हो सकता है और तनाव में आ सकता है। ऐसे में लक्षणों के दिखने के समय पर ध्यान देना मददगार हो सकता है। आघात जैसे किसी कारण से होने वाले न्यूरोलॉजिकल लक्षण एकदम तेज़ी से होते हैं – आघात से पीड़ित कोई व्यक्ति एक मिनट से भी कम समय में अपनी आँखों की रोशनी खो सकता है। इसकी तुलना में MS में लक्षण थोड़े धीमे उत्पन्न होते हैं, जैसे कि MS से पीड़ित मरीज़ की आँखों की रोशनी जाने या उनकी आँखों में दोहरी दृष्टि उत्पन्न होने में एक या दो दिन लगते हैं। इसके अलावा, MS के लक्षण कुछ समय बाद पूरी तरह खत्म हो सकते हैं।

3. इलाज से पुनरावर्तन में काफ़ी कमी आ सकती है

जिन लोगों ने MS की जाँच नहीं करवाई होती है, वे लक्षणों के गायब होने के बाद उन्हें नज़रअंदाज़ करने की कोशिश कर सकते हैं। हालाँकि, लक्षणों के कारण का पता लगाना और उनके बारे में स्वास्थ्य सेवा पेशेवर से चर्चा करना बहुत ज़रूरी होता है। यह रोग का पता लगाने और इलाज शुरू करने का पहला चरण होता है। मरीज़ों को इमेजिंग के लिए न्यूरोलॉजिस्ट के पास जाने की सलाह लेने के लिए अपने प्राथमिक चिकित्सक और सलाहकार से बात करनी चाहिए। मैग्नेटिक रीसोनेंस इमेजिंग (MRI), MS का पता लगाने के लिए सबसे अच्छा इमेजिंग परीक्षण होता है। जब स्वास्थ्य सेवा प्रदाता यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हों कि कहीं आपके लक्षण किसी और कारण से तो नहीं हुए हैं, तब उनके साथ सब्र से पेश आएँ।

मरीज़ को MS होने की पुष्टि हो जाने के बाद, इलाज इस रोग के निवारण की अवधियों को काफ़ी बढ़ा सकता है। मरीज़ों में इसका पुनरावर्तन औसतन हर एक या दो साल में होता है। हालाँकि, इलाज करवाकर पुनरावर्तन का अंतराल 10 या यहाँ तक कि 20 साल तक भी बढ़ाया जा सकता है। रोग की स्थिति और लक्षणों के आधार पर न्यूरोलॉजिस्ट, मरीज़ों को सबसे प्रभावी इलाज और दवाइयों के बारे में मार्गदर्शन दे सकते हैं।

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