व्यक्ति की आयु के बढ़ने के साथ-साथ लिवर में अनेक संरचनात्मक और माइक्रोस्कोपिक परिवर्तन होते हैं। (लिवर तथा पित्ताशय के सामान्य कार्य पर चर्चा करने के लिए लिवर तथा पित्ताशय के विवरण को देखें।) उदाहरण के लिए, लिवर रंग हल्के से गहरे में परिवर्तित हो जाता है। इसके आकार और रक्त के प्रवाह में कमी होती है। हालांकि लिवर परीक्षण परिणाम आमतौर पर सामान्य रहते हैं।
आयु बढ़ने के साथ लिवर की अनेक तत्वों को मेटाबोलाइज़ करने की क्षमता में कमी आती है। इस प्रकार, युवा लोगों की तुलना में वृद्ध व्यक्तियों में कुछ दवाओं को इतनी शीघ्रता से इनएक्टिवेट नहीं होती हैं। परिणामस्वरूप, ऐसी दवा खुराक जिसका युवा लोगों में कोई दुष्प्रभाव नही हुआ होता, उसका बूढ़े लोगों में खुराक-संबंधित दुष्प्रभाव हो सकते हैं (बढ़ती उम्र तथा दवाएं देखें)। इस प्रकार, वृद्ध लोगों में दवा की खुराक को कम करना पड़ता है।
साथ ही, तनाव को झेलने की लिवर की क्षमता भी कम हो जाती है। इस प्रकार, लिवर के लिए विषाक्त तत्व, युवा लोगों की तुलना में वृद्ध लोगों में अधिक क्षति कर सकते हैं। वृद्ध लोगों में क्षतिग्रस्त लिवर कोशिकाओं की मरम्मत भी धीमी होती है।
आयु बढ़ने के साथ-साथ बाइल का उत्पादन और प्रवाह भी कम हो जाता है। परिणामस्वरूप, पित्ताशय की पथरियों के बनने की संभावना अधिक होती है।