अम्ल-क्षार संतुलन का विवरण

इनके द्वाराJames L. Lewis III, MD, Brookwood Baptist Health and Saint Vincent’s Ascension Health, Birmingham
समीक्षा की गई/बदलाव किया गया जुल॰ २०२३

स्वस्थ रहने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रक्त में अम्लता या क्षारीयता के सामान्य संतुलन को बनाए रखना है। रक्त सहित किसी भी घोल की अम्लीयता या क्षारीयता को pH स्केल पर दर्शाया जाता है। pH स्केल की रेंज 0 (पूरी तरह अम्लीय) से 14 (पूरी तरह एल्केलाइन) तक होती है। इस स्केल के बीच का 7.0, का pH उदासीन होता है। रक्त सामान्य तौर पर हल्का सा क्षारीय होता है, जिसकी सामान्य pH रेंज 7.35 से 7.45 तक होती है। आमतौर पर शरीर रक्त के pH को 7.40 के करीब रखता है।

डॉक्टर रक्त में कार्बन डाइऑक्साइड (अम्ल) और बाइकार्बोनेट (क्षार) की मात्रा तथा pH को मापकर मरीज़ के रक्त के अम्ल-क्षार संतुलन का आकलन करता है।

रक्त की अम्लीयता तब बढ़ जाती है, जब

  • शरीर में अम्लीय यौगिकों की मात्रा बढ़ जाती है (या तो बाहर से अम्लीय पदार्थों के आने के कारण या शरीर में अम्ल का अधिक उत्पादन होने के कारण या अम्ल की निस्तारण में कमी आने के कारण)

  • शरीर में क्षारीय (एल्केलाइन) यौगिकों की मात्रा कम हो जाती है (बाहर से क्षारीय पदार्थों के आने में या उत्पादन में कमी के कारण या क्षार का निस्तारण अधिक होने के कारण)

रक्त की क्षारीयता तब बढ़ जाती है, जब शरीर में अम्ल की मात्रा कम हो जाती है या क्षार की मात्रा बढ़ जाती है।

अम्ल-क्षार के संतुलन का नियंत्रण

शरीर के अम्लीयता और क्षारीयता के संतुलन को अम्ल-क्षार संतुलन कहा जाता है।

रक्त का अम्ल-क्षार संतुलन सटीक तरीके से नियंत्रित होता है, क्योंकि सामान्य रेंज से थोड़ा भी अलग होने पर कई अंग गंभीर रूप से प्रभावित हो सकते हैं। रक्त के अम्ल-क्षार संतुलन को नियंत्रित करने के लिए शरीर अलग-अलग तंत्रों का उपयोग करता है। इन तंत्रों में शामिल होते हैं

  • फेफड़े

  • किडनी

  • बफ़र सिस्टम

फेफड़ों की भूमिका

रक्त के pH को नियंत्रित करने का एक तंत्र यह है कि शरीर फेफड़ों से कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर निकालता है। कार्बन डाइऑक्साइड, जो हल्की अम्लीय गैस होती है, ऑक्सीजन तथा पोषक पदार्थों (जिनकी ज़रूरत हमारी कोशिकाओं को होती है) की प्रोसेसिंग (मेटाबोलिज़्म) के दौरान बनने वाला अपशिष्ट उत्पाद होता है और इसे कोशिकाएं लगातार बनाती रहती हैं। कोशिकाओं से यह रक्त में पहुँच जाता है। रक्त कार्बन डाइऑक्साइड को फेफड़ों तक ले जाता है, जहाँ से उसे बाहर निकाल दिया जाता है। जैसे-जैसे रक्त में कार्बन डाइऑक्साइड इकट्ठा होता जाता है, रक्त का pH कम होता जाता है (अम्लीयता बढ़ती जाती है)।

मस्तिष्क सांस की स्पीड और गहराई (वेंटीलेशन) को नियंत्रित करके सांस में बाहर छोड़ी जाने वाली कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को नियंत्रित करता है। जैसे-जैसे सांस तेज़ और गहरी होती जाती है, वैसे-वैसे बाहर छोड़ी गई कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा और उसके कारण रक्त का pH बढ़ता जाता है। सांस की स्पीड और गहराई को बदलकर, मस्तिष्क और फेफड़े हर मिनट रक्त के pH को नियंत्रित करते रहते हैं।

किडनी की भूमिका

अतिरिक्त अम्लों या क्षारों को उत्सर्जित करके किडनी रक्त के pH को प्रभावित कर पाती हैं। किडनी में यह क्षमता होती है कि वे उत्सर्जित होने वाले अम्ल या क्षार की मात्रा को बदल सकती हैं, लेकिन चूंकि किडनी ये कार्य फेफड़ों की तुलना में धीमे कर पाती हैं, इसलिए अम्ल-क्षार का संतुलन बनने में कई दिन लग सकते हैं।

बफ़र सिस्टम

रक्त के pH को नियंत्रित करने का दूसरा तंत्र केमिकल बफ़र सिस्टम का उपयोग करना होता है, ये सिस्टम अम्लीयता या क्षारीयता में अचानक होने वाले परिवर्तनों से शरीर की सुरक्षा करते हैं। pH बफ़र सिस्टम, शरीर में प्राकृतिक रूप से मौजूद दुर्बल अम्ल और दुर्बल क्षारों का संयोजन होते हैं। ये दुर्बल अम्ल और क्षार, जोड़ों में पाए जाते हैं और सामान्य pH होने पर संतुलन की अवस्था में रहते हैं। pH बफ़र सिस्टम रासायनिक तौर पर कार्य करते हैं और किसी घोल में अम्ल और क्षार के अनुपात को बदलकर pH के बदलावों का प्रभाव कम कर देते हैं।

खून के सबसे महत्वपूर्ण pH बफ़र सिस्टम में कार्बोनिक अम्ल (कार्बन डाइऑक्साइड के रक्त में घुलने से बना दुर्बल अम्ल) और बाइकार्बोनेट आयन (संबंधित दुर्बल क्षार) शामिल होते हैं।

अम्ल-क्षार विकारों के प्रकार

अम्ल-क्षार संतुलन की असामान्यताएँ दो प्रकार की होती हैं:

  • एसिडोसिस: रक्त में बहुत ज़्यादा अम्ल का होना (या क्षार की कमी होना), जिससे रक्त का pH कम हो जाता है।

  • एल्केलोसिस: रक्त में बहुत ज़्यादा क्षार का होना (या अम्ल की कमी होना), जिससे रक्त का pH बढ़ जाता है।

एसिडोसिस और एल्केलोसिस कोई बीमारियाँ नहीं हैं, बल्कि ये कई तरह के विकारों के परिणाम होते हैं। एसिडोसिस या एल्केलोसिस से डॉक्टर को इस बात का महत्वपूर्ण संकेत मिल जाता है कि शरीर में कोई गंभीर समस्या मौजूद है।

एसिडोसिस और एल्केलोसिस के प्रकार

एसिडोसिस और एल्केलोसिस को उनके प्राथमिक कारण के आधार पर ऐसे वर्गीकृत किया गया है

  • मेटाबोलिक

  • श्वसन तंत्र

मेटाबोलिक एसिडोसिस और मेटाबोलिक एल्केलोसिस अम्लों या क्षारों के उत्पादन और किडनी द्वारा उनके उत्सर्जन में असंतुलन के कारण होते हैं।

श्वसन तंत्र एसिडोसिस और श्वसन तंत्र एल्केलोसिस फेफड़े के किसी विकार या किसी श्वसन विकार के कारण कार्बन डाइऑक्साइड के बाहर निकलने में होने वाला बदलाव के कारण होते हैं।

लोगों में एक से ज़्यादा अम्ल-क्षार विकार हो सकते हैं।

अम्ल-क्षार विकारों की क्षतिपूर्ति

अम्ल-क्षार में होने वाली हर गड़बड़ी स्वचालित क्षतिपूर्ति तंत्र को उत्तेजित करती है जिससे रक्त का pH वापस सामान्य होने लगता है। सामान्य तौर पर, श्वसन तंत्र मेटाबोलिक संबंधी गड़बड़ी की क्षतिपूर्ति करता है जबकि मेटाबोलिक तंत्र श्वसन संबंधी गड़बड़ी की क्षतिपूर्ति करता है।

सबसे पहले, क्षतिपूर्ति तंत्र pH को सामान्य के करीब बहाल कर सकता है। इस प्रकार, यदि रक्त का pH काफी बदल गया है, तो इसका मतलब है कि शरीर की क्षतिपूर्ति क्षमता विफल हो रही है। ऐसे मामलों में, डॉक्टर तुरंत अम्ल-क्षार की गड़बड़ी का छिपा हुआ कारण ढूँढते हैं और उसका इलाज करते हैं।

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