आयरन ज़्यादा होने की स्थिति तब होती है जब शरीर में आयरन नामक मिनरल ज़रूरत से ज़्यादा होता है।
शरीर में ज़्यादातर आयरन हीमोग्लोबिन में मौजूद होता है। हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं का एक संघटक है जिसके माध्यम से वे ऑक्सीजन को ले जाकर शरीर के ऊतकों तक पहुंचाने का काम कर पाती हैं। आयरन मांसपेशियों की कोशिकाओं का एक महत्वपूर्ण संघटक भी है और ये शरीर में कई एंज़ाइम बनाने के लिए भी आवश्यक है।
(यह भी देखें मिनरल्स का अवलोकन।)
भोजन में दो प्रकार के आयरन होते हैं:
हेम आयरन: पशु उत्पादों में हेम आयरन होता है। यह नॉन हेम आयरन की तुलना में बहुत बेहतर तरह से अवशोषित होता है।
नॉनहेम आयरन: ज़्यादातर खाद्य पदार्थों और आयरन सप्लीमेंट्स में नॉन हेम आयरन होता है। यह औसत आहार की तुलना में 85% अधिक आयरन होता है। हालांकि, सेवन किए गए नॉन हेम आयरन का 20% से कम ही शरीर में अवशोषित हो पाता है। नॉन हेम आयरन को पशु प्रोटीन और विटामिन C के साथ लेने पर ये बहुत बेहतर तरह से अवशोषित होता है।
शरीर में ज़रूरत से ज़्यादा आयरन जमा हो सकता है। कारणों में निम्नलिखित शामिल हैं:
बार-बार ब्लड ट्रांसफ़्यूजन होने पर
अत्यधिक मात्रा में या बहुत लंबे समय तक आयरन थेरेपी दिए जाने पर
शराब पीने के विकार
आयरन का ओवरडोज़ होने पर
हेमोक्रोमैटोसिस नामक एक वंशानुगत विकार होने के कारण
एक बारी में आयरन का ज़रूरत से ज़्यादा सेवन करने से उल्टी, दस्त और आंत और अन्य अंगों को नुकसान पहुंचने जैसी समस्याएं हो सकती हैं। लंबे समय तक ज़रूरत से ज़्यादा आयरन का सेवन दिल और लिवर को नुकसान पहुंचा सकता है।
आयरन की विषाक्तता का निदान डॉक्टर के मूल्यांकन पर आधारित होता है और कभी-कभी इसके लिए रक्त परीक्षण से पुष्टि करने की ज़रूरत होती है जिनमें आयरन और फ़ेरिटिन (एक ऐसा प्रोटीन जो आयरन को स्टोर करता है) के स्तर मापे जाते हैं।
इलाज में अक्सर इंट्रावीनस तरीके डेफ़रॉक्सिमीन देना शामिल है। यह दवा आयरन से जाकर जुड़ती है और इसे पेशाब के रास्ते से शरीर से बाहर ले जाती है। हेमोक्रोमैटोसिस का इलाज रक्त को निकालकर (फ्लेबोटॉमी) किया जाता है।