क्या जांच कराना सभी के लिए ज़रूरी है?

संक्षेप में कहें तो जवाब होगा, नहीं। हालांकि, बहुत से लोगों को चिकित्सीय जांच कराके लगता है कि सब ठीक है, लेकिन जांच के परिणाम हमेशा सही नहीं होते हैं:

  • कभी-कभी उन लोगों में जांच के परिणाम सामान्य आते हैं जिन्हें कोई बीमारी होती है (फॉल्स नेगेटिव)।

  • कभी-कभी उन लोगों में जांच के परिणाम असामान्य आते हैं जिन्हें कोई बीमारी नहीं होती है (फॉल्स पॉजिटिव)।

जांच करानी चाहिए या नहीं? फॉल्स पॉजिटिव रिज़ल्ट पाने की संभावना से मन में जांच कराने को लेकर शंका हो सकती है। जब किसी को रोग होने की संभावना, उस रोग की जांच के फॉल्स पॉजिटिव होने की संभावना से कम होती है, तो उस स्थिति में जांच के भ्रामक होने की संभावना होती है।

एक उदाहरण देखें: मान लीजिए कि एक 4 साल की बच्ची के माता-पिता चिंतित हैं कि उनकी बेटी को ब्लैडर का संक्रमण (UTI) हो सकता है, क्योंकि वह अपनी जांघों को एक साथ पकड़ कर चल रही है। हालांकि क्लिनिक में डॉक्टर को पता चलता है कि लड़की में UTI होने के कोई लक्षण मौजूद नहीं हैं। क्योंकि लड़की को बार-बार पेशाब नहीं आ रहा है, उसे पेशाब के साथ दर्द या जलन नहीं हो रही है और उसका ब्लैडर और किडनी कमज़ोर नहीं हुए हैं। इन निष्कर्षों के आधार पर, डॉक्टर इस नतीजे पर पहुँचते हैं कि UTI होने की संभावना बहुत कम है (5% से अधिक नहीं) और माता-पिता को यकीन दिलाते हैं कि जब तक अन्य लक्षण विकसित नहीं होते, तब तक कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं है। माता-पिता का कहना है कि अगर डॉक्टर यूरिन टेस्ट करवाते, तो उन्हें बेहतर महसूस होता, क्योंकि यह साबित हो जाता कि उनकी बेटी को UTI नहीं है। क्या ऐसे में जांच करने से मदद मिलेगी या नुकसान होगा?

जांच परिणामों की संभावित उपयोगिता का मूल्यांकन: मान लीजिए कि डॉक्टर ने UTI के लिए एक ऐसी जांच की जिसका नतीजा 10% समय फॉल्स पॉजिटिव ही आता है (कई चिकित्सीय जांचों में 10% फॉल्स पॉजिटिव होना आम बात है)।

यहां तक कि यह मानते हुए कि जब लोगों को UTI होने पर भी परिणाम हमेशा पॉजिटिव था, इसका मतलब हुआ कि इस लड़की की तरह ही 100 छोटी बच्चियों में

  • जिन 5 को असल में UTI था, उनमें जांच का परिणाम सच में पॉजिटिव आया।

लेकिन

  • 10 बच्चियों में जांच का परिणाम फॉल्स पॉजिटिव आया।

दूसरे शब्दों में कहें तो, खास तौर पर इस छोटी लड़की में, जांच का परिणाम फॉल्स पॉजिटिव आने पर उसके सही होने की तुलना में गलत होने की संभावना दोगुनी होती है।

जांच परिणामों का निर्णय लेने पर प्रभाव: इस प्रकार, इस मामले में, एक फॉल्स पॉज़िटिव रिज़ल्ट आने पर भी डॉक्टर को इलाज करने का निर्णय नहीं बदलना चाहिए, क्योंकि वह फॉल्स पॉजिटिव रिज़ल्ट गलत भी हो सकता है। चूंकि डॉक्टर कुछ अलग नहीं करेंगे, इसलिए शुरुआत में भी जांच कराने का कोई फायदा नहीं है।

अगर डॉक्टर को UTI होने की संभावना ज़्यादा लगती है, तो बात अलग है। अगर यह संभावना 50-50 होती, तो फॉल्स पॉजिटिव रिज़ल्ट वाले अधिकांश लोगों को सही में UTI होता है और जांच करना फायदेमंद होता है।

यह गणित यह समझाने में मदद करता है कि डॉक्टर केवल तब ही जांच करने की कोशिश क्यों करते हैं, जब उन्हें इस बात की पूरी संभावना लगती है कि लोगों को वही बीमारी है जिसके लिए उनकी जांच की जा रही है।