रक्तचाप को विनियमित करना: रेनिन-एंजियोटेंसिन-एल्डोस्टेरोन प्रणाली
रेनिन-एंजियोटेंसिन-एल्डोस्टेरोन प्रणाली प्रतिक्रियाओं की एक शृंखला है जिसका उद्देश्य रक्तचाप को विनियमित करना है।
जब रक्तचाप गिरता है (जैसे, सिस्टॉलिक 100 मिमी ऑफ मर्क्यूरी या उससे कम हो जाता है), तो गुर्दे रक्त की धारा में एंज़ाइम रेनिन को रिलीज करते हैं।
रेनिन रक्त में संचरित होने वाले एंजियोटेंसिनोजन नामक एक बड़े प्रोटीन को टुकड़ों में विभाजित करता है। एक टुकड़ा एंजियोटेंसिन I है।
एंजियोटेंसिन I, जो अपेक्षाकृत निष्क्रिय होता है, को एंजियोटेंसिन-कन्वर्टिग एंज़ाइम (ACE) द्वारा टुकड़ों में विभाजित किया जाता है। एक टुकड़ा एंजियोटेन्सिन II है, एक ऐसा हार्मोन जो और बहुत ज़्यादा सक्रिय होता है।
एंजियोटेन्सिन II की वजह से छोटी धमनियों (आर्टेरिओल्स) की मांसल सतहें सिकुड़ती हैं, जिससे ब्लड प्रेशर बढ़ता है। एंजियोटेन्सिन II एड्रीनल ग्रंथियों से हार्मोन एल्डोस्टेरॉन और पिट्यूटरी ग्लैंड से वेसोप्रैसिन (एंटीडाइयूरेटिक हार्मोन) का रिलीज़ होना भी ट्रिगर करता है।
एल्डोस्टेरोन और वैसोप्रेसिन के कारण गुर्दे सोडियम (नमक) का प्रतिधारण करते हैं। एल्डोस्टेरोन के कारण गुर्दे पोटैशियम का उत्सर्जन भी करते हैं। सोडियम में वृद्धि के कारण पानी का प्रतिधारण होता है, जिससे रक्त की मात्रा और रक्तचाप बढ़ जाता है।