हाइपरऑस्मोलर हाइपरग्लाइसिमिक स्टेट (HHS)

(नॉनकीटोटिक हाइपरऑस्मोलर सिंड्रोम; नॉनकीटोटिक हाइपरऑस्मोलर कोमा)

इनके द्वाराErika F. Brutsaert, MD, New York Medical College
समीक्षा की गई/बदलाव किया गया अक्तू॰ २०२३

हाइपरऑस्मोलर हाइपरग्लाइसिमिक स्टेट डायबिटीज मैलिटस की एक जटिलता है जो कि आमतौर पर टाइप 2 डायबिटीज में होती है।

  • हाइपरऑस्मोलर हाइपरग्लाइसिमिक स्टेट के लक्षणों में बहुत गंभीर डिहाइड्रेशन और भ्रम शामिल हैं।

  • हाइपरऑस्मोलर हाइपरग्लाइसिमिक स्थिति का निदान ब्लड टेस्ट से किया जाता है जिसमें ग्लूकोज़ की मात्रा बहुत ज़्यादा और खून बहुत गाढ़ा होने का पता चलता है।

  • इंट्रावीनस तरीके से फ़्लूड और इंसुलिन देकर इसका इलाज किया जाता है।

  • इसकी जटिलताओं में कोमा, सीज़र्स और मृत्यु शामिल हैं।

(डायबिटीज मैलिटस भी देखें।)

डायबिटीज मैलिटस दो तरह के होते हैं, टाइप 1 और टाइप 2। टाइप 1 डायबिटीज में, शरीर में इंसुलिन बिल्कुल नहीं बनता, यह अग्नाशय का बनाया एक हार्मोन है जो शुगर (ग्लूकोज़) को ब्लड से सेल में भेजने में मदद करता है। टाइप 2 डायबिटीज में, शरीर इंसुलिन बनाता है, लेकिन कोशिकाएं इंसुलिन के लिए प्रतिक्रिया नहीं दे पाती। दोनों तरह की डायबिटीज में, शरीर में शुगर (ग्लूकोज़) की मात्रा बढ़ी हुई होती है।

टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ित लोगों को इंसुलिन नहीं दिया जाता या उन्हें अतिरिक्त इंसुलिन सिर्फ़ बीमारी में दिया जाता है, जब ऊर्जा पैदा करने के लिए वसीय कोशिकाएं टूटने लगती हैं। वसीय कोशिकाएं टूटने पर कीटोन नाम का पदार्थ पैदा करती हैं। कीटोन उन सेल को कुछ ऊर्जा देता है, लेकिन ब्लड को बहुत एसिडिक (कीटोएसिडोसिस) बना देता है। डायबेटिक कीटोएसिडोसिस खतरनाक होता है, कभी-कभी जानलेवा विकार होता है।

चूंकि टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित लोगों में कुछ इंसुलिन बनता है, इसलिए लंबे समय तक टाइप 2 डायबिटीज का इलाज न कराने पर भी कीटोएसिडोसिस नहीं होता। हालांकि, हाइपरऑस्मोलर हाइपरग्लाइसिमिक स्टेट होने पर, ब्लड ग्लूकोज़ लेवल बहुत ज़्यादा बढ़ जाते हैं (यहां तक की ब्लड के 1,000 मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर [मिग्रा/डेसीली] या 55.5 मिलीमोल प्रति लीटर [मिलीमोल/ली] से भी ज़्यादा)। ब्लड ग्लूकोज़ के इतने बढ़ जाने पर व्यक्ति को बहुत ज़्यादा पेशाब आती है, जिसकी वजह से आखिर में गंभीर डिहाइड्रेशन हो जाता है। खून में सोडियम और दूसरे पदार्थों के लेवल भी बढ़ जाते हैं, जिससे व्यक्ति का खून असामान्य रूप से इकट्ठा (हाइपरऑस्मोलर) हो जाता है। इसलिए, इस विकार को हाइपरऑस्मोलर हाइपरग्लाइसिमिक स्टेट कहते हैं।

हाइपरऑस्मोलर हाइपरग्लाइसिमिक स्थिति के कारण

हाइपरऑस्मोलर हाइपरग्लाइसिमिक स्टेट आमतौर पर दो मुख्य वजहों से होती है

  • व्यक्ति डायबिटीज की दवाई लेना बंद कर दे

  • किसी इंफ़ेक्शन या अन्य बीमारी की वजह से शरीर पर तनाव बढ़ जाए

साथ ही, कुछ दवाओं से भी ब्लड ग्लूकोज़ का लेवल बढ़ जाता है और उनसे हाइपरऑस्मोलर हाइपरग्लाइसिमिक स्टेट हो सकती है, जैसे कि कॉर्टिकोस्टेरॉइड। डायुरेटिक्स जैसी दवाएँ, जो अक्सर ब्लड प्रेशर बढ़ने पर ली जाती हैं उनसे डिहाइड्रेशन बहुत गंभीर हो सकता है और हाइपरऑस्मोलर हाइपरग्लाइसिमिक स्टेट हो सकता है।

हाइपरऑस्मोलर हाइपरग्लाइसिमिक स्थिति के लक्षण

हाइपरऑस्मोलर हाइपरग्लाइसिमिक स्टेट का मुख्य लक्षण, मानसिक बदलाव होता है। यह बदलाव हल्के भ्रम और भटकाव से लेकर उनींदापन और कोमा तक जाते हैं। कुछ लोगों को सीज़र्स और/या कुछ हिस्से में अस्थायी लकवा हो सकता है जो आघात की तरह लगता है। इसमें 20% तक लोगों की मृत्यु हो जाती है। मानसिक स्थिति में बदलाव से पहले कुछ लक्षण दिखाई देते हैं, जिनमें बार-बार पेशाब आना और बहुत ज़्यादा प्यास लगना शामिल हैं।

हाइपरऑस्मोलर हाइपरग्लाइसिमिक स्थिति का निदान

  • ग्लूकोज़ लेवल का पता लगाने के लिए ब्लड टेस्ट

डॉक्टर हाइपरऑस्मोलर हाइपरग्लाइसिमिक का निदान का संदेह तब करते हैं, जब किसी व्यक्ति को हाल ही में भ्रम होने लगा हो और उसका ब्लड ग्लूकोज़ लेवल बहुत ज़्यादा हो। निदान की पुष्टि करने के लिए वे अन्य ब्लड टेस्ट करते हैं, जिसमें खून गाढा होने और रक्त प्रवाह में कीटोन की मात्रा कम होने या एसिडिटी का पता चलता है।

हाइपरऑस्मोलर हाइपरग्लाइसिमिक स्थिति का उपचार

  • शिरा के माध्यम से फ़्लूड और इलेक्ट्रोलाइट्स दिये जाते हैं

  • शिरा के माध्यम से इंसुलिन देना

हाइपरऑस्मोलर हाइपरग्लाइसिमिक स्टेट का इलाज डायबेटिक कीटोएसिडोसिस की तरह ही किया जाता है। इंट्रावीनस तरीके से फ़्लूड और इलेक्ट्रोलाइट्स भी बदले जाने चाहिए। आमतौर पर, व्यक्ति को इंसुलिन इंट्रावीनस तरीके से दिया जाता है, ताकि वह तेज़ से काम करे और खुराक को बार-बार एडजस्ट किया जा सके। ब्लड में ग्लूकोज़ के लेवल को धीरे-धीरे सामान्य पर लाया जाना चाहिए, ताकि दिमाग में मौजूद फ़्लूड में अचानक बदलाव न आए। ब्लड ग्लूकोज़ लेवल को डायबेटिक कीटोएसिडोसिस की तुलना में ज़्यादा आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है और ब्लड एसिडिटी की समस्याएं गंभीर नहीं होती।