नार्कोलेप्सी ऐसी नींद संबंधी बीमारी हैं जिनमें दिन के समय नींद आने की समस्या या जागने के सामान्य घंटों के दौरान नींद के बार-बार अनियंत्रित एपिसोड्स होते हैं, आमतौर पर अचानक, अस्थाई मांसपेशी कमजोरियों के एपिसोड्स के साथ ऐसा होता है (कैटाप्लेक्सी)। अन्य लक्षणों में नींद संबंधी लकवा, सोते समय कई तरह के सपने आना, तथा मतिभ्रम या सोते हुए जाग जाना शामिल होते हैं।
निदान की पुष्टि करने के लिए, पॉलीसोम्नोग्राफ़ी के साथ स्लीप लेबोरेटरी में जांच करना और एकाधिक स्लीप लेटेंसी परीक्षण की आवश्यकता होती है।
लोगों को जगाए रखने तथा अन्य लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए दवाओं का इस्तेमाल किया जा सकता है।
(नींद का विवरण भी देखें।)
अमेरिका, यूरोप और जापान में 2,000 में से 1 व्यक्ति को नार्कोलेप्सी होती है। यह पुरुषों और महिलाओं में समान रूप से होता है।
नार्कोलेप्सी के कारण अज्ञात हैं। नार्कोलेप्सी से पीड़ित कुछ लोगों में जीन के समान समूह पाए जाते हैं, लेकिन कारणों को आनुवंशिक नहीं माना जाता। ऐसा लगता है कि पर्यावरणीय कारण शामिल होते हैं तथा विकार को उत्प्रेरित कर सकते हैं। कुछ साक्ष्य यह संकेत करते हैं कि नार्कोलेप्सी ऑटोइम्यून प्रतिक्रिया के कारण हो सकती है जिसके कारण दिमाग के कुछ खास हिस्सों में तंत्रिका संबंधी कोशिकाएँ नष्ट हो जाती हैं। (ऑटोइम्यून प्रतिक्रिया उस समय होती है जब प्रतिरक्षा प्रणाली शरीर के अपने ही ऊतकों पर हमला करती है।)
नार्कोलेप्सी से पीड़ित लोग दिन के दौरान बहुत अधिक सोते हैं। इसकी वजह से, नार्कोलेप्सी अक्षमकारी हो सकती है और मोटर वाहन तथा अन्य दुर्घटनाओं के जोखिम को बढ़ाती है। नार्कोलेप्सी पूरे जीवनकाल बनी रहती है, लेकिन यह उत्तरजीविता को प्रभावित नहीं करती।
नार्कोलेप्सी आंशिक रूप से तीव्र नेत्र संचलन (REM) नींद के समय और नियंत्रण संबंधी असामान्यताओं में देखी जा सकती है। REM नींद के दौरान क्या होता है, इसके अनेक लक्षण मेल खाते हैं। नार्कोलेप्सी से जुड़ी मांसपेशियों की कमजोरी, नींद संबंधी लकवा और मतिभ्रम REM नींद के दौरान मांसपेशियों की टोन, पक्षाघात, और कई तरह के सपनों से मेल खाते हैं।
नार्कोलेप्सी की तरह आइडियोपैथिक हाइपरसोम्निया की वजह से बहुत ज़्यादा नींद आती है। खास तौर पर, इस समस्या से पीड़ित लोगों को जागने में परेशानी होती है, और जब वे जाग जाते हैं, तो उनको उनींदापन लगता है, मानसिक रूप से अस्पष्टता का अहसास होता है और ऐसा लगता है कि वे गतिविधि नहीं कर सकते हैं (जिसे नींद की कमी कहा जाता है)। पॉलीसोम्नोग्राफ़ी तथा मल्टीपल लेटेंसी टेस्ट की ज़रूरत यह तय करने के लिए होती है कि क्या नार्कोलेप्सी या आइडियोपैथिक हाइपरसोम्निया के कारण दिन में बहुत ज़्यादा नींद आने की समस्या तो नहीं हो रही है।
नार्कोलेप्सी के लक्षण
नार्कोलेप्सी के लक्षणों की शुरुआत आमतौर पर किशोरावस्था या युवा वयस्कता के दौरान होती है, और यह जीवन भर बनी रहती है।
मुख्य लक्षण निम्नलिखित होते हैं
गंभीर रूप से दिन में बहुत ज़्यादा नींद आना
कैटाप्लेक्सी (अचानक, होने वाले मांसपेशी की कमजोरी के अस्थाई एपिसोड्स)
सोते या जागते समय मतिभ्रम
नींद संबंधी लकवा
रात की नींद में रुकावटें (जैसे बार बार जागना तथा कई तरह के डरावने सपने)
नार्कोलेप्सी से पीड़ित केवल 15% लोगों में ही सभी लक्षण होते हैं। ज़्यादातर लोगों में केवल कुछ ही लक्षण होते हैं। सभी में दिन के समय में बहुत ज़्यादा नींद आने की समस्या होती है।
दिन में बहुत नींद आना
नार्कोलेप्सी से पीड़ित लोगों में दिन के समय बहुत ज़्यादा नींद आने की समस्या होती है, अक्सर ऐसा बावजूद बहुत ज़्यादा नींद के होता है। बहुत से लोगों में अनियंत्रित नींद के अचानक एपिसोड होते हैं जो किसी भी समय हो सकता है, अक्सर बिना किसी चेतावनी के (नींद के दौरे कहा जाता है) ऐसा होता है। सो जाने को केवल अस्थाई रूप से रोका जा सकता है।
लोगों में अनेक एपिसोड्स हो सकते हैं या एक दिन में उनके साथ ऐसा केवल एक बार होता है। आमतौर पर, हर एपिसोड कुछ मिनट या कम समय तक चलता है, लेकिन ऐसा घंटों तक हो सकता है। लोगों को सामान्य नींद की तरह तत्काल जगाया जा सकता है। जब वे जागते हैं, तो खास तौर पर ताज़ा महसूस करते हैं, यहां तक कि नींद से संबंधित एपिसोड कुछ ही मिनट तक ही क्यों न चलें। हालांकि, वे कुछ ही मिनटों में फिर से सो सकते हैं।
नींद आने से संबंधित एपिसोड्स आमतौर पर, एक जैसी स्थितियों में होते हैं, जैसे बोर करने वाली बैठकों में या हाईवे पर लंबे समय तक ड्राइव करने के दौरान ऐसा हो सकता है, लेकिन ऐसा खाते समय, बोलते समय और लिखते समय भी हो सकता है।
कैटाप्लेक्सी
लोगों के दिन के दौरान जागते रहने के बावजूद चेतना के अभाव के बिना अचानक, अस्थाई रूप से मांसपेशियों के कमजोर होने से संबंधित एपिसोड—जिसे कैटाप्लेक्सी कहा जाता है—अचानक होने वाली भावनात्मक प्रतिक्रियाओं जैसे गुस्सा, डर, आनन्द, हंसी या आश्चर्य के कारण भी हो सकता है। लोग लंगड़ाने लग सकते हैं, हाथ में पकड़ी हुई किसी चीज़ को गिरा सकते हैं या नीचे गिर सकते हैं। उनका जबड़ा लटक सकता है, चेहरे की मांसपेशियों में ऐंठन आ सकती है, आँखे बंद हो सकती हैं, तथा सिर हिलने लग सकता है। नज़र धुंधली हो सकती है। लोगों की जबान लड़खड़ाने लग सकती है।
ये एपिसोड सामान्य मांसपेशी में लकवे जैसे नज़र आ सकते हैं जो तीव्र गति से आँख की गतिविधि (REM) नींद के दौरान होती है, और निम्न स्तर तक, "हंसने के कारण कमजोरी" जैसा अनुभव होता है।
नार्कोलेप्सी से पीड़ित कुल लोगों में से लगभग पाँचवे हिस्से तक के लोगों को कैटाप्लेक्सी के कारण काफी अधिक समस्याएं होती हैं।
नींद संबंधी लकवा
कभी-कभी, जब अभी अभी सोना होता है या जागने के तत्काल बाद, लोग गतिविधि करने की कोशिश करते हैं, लेकिन ऐसा नहीं कर पाते। इस अनुभव, जिसे नींद संबंधी लकवा कहा जाता है, बहुत भयानक हो सकता है। किसी दूसरे व्यक्ति के स्पर्श से लकवा में आराम हो सकता है। अन्यथा, कई मिनटों के बाद, लकवा अपने-आप ठीक हो जाता है।
नार्कोलेप्सी से पीड़ित लगभग एक-चौथाई लोगों में स्लीप पैरालिसिस होता है। कभी-कभी ऐसा स्वस्थ बच्चों और कभी-कभी स्वस्थ वयस्कों में हो सकता है।
मतिभ्रम
जब अभी-अभी सोए हों, या कभी-कभी जब जाग रहे हों, तो लोगों को स्पष्ट तौर पर छवियाँ दिखाई दे सकती हैं या वे ऐसी आवाज़े सुन सकते हैं जो वहां पर है ही नहीं। ये अलग-अलग तरह के मतिभ्रम उन मतिभ्रमों के समकक्ष होते हैं जो सामान्य सपनों में होता है, लेकिन ये कहीं अधिक तीव्र होते हैं। मतिभ्रम को कहा जाता है
सोते समय होते हैं, तो उन्हें हिप्नागोगिक कहा जाता है
और जब ये जागते हुए घटित होते हैं, तो इन्हें हिप्नोपोमिक कहा जाता है
नार्कोलेप्सी से पीड़ित लगभग एक तिहाई से लेकर आधे से अधिक लोगों में हिप्नागोगिक हैलुसिनेशन होता है। ऐसा स्वस्थ बच्चों में आमतौर पर होता है तथा कभी-कभी ऐसा स्वस्थ वयस्कों में भी होता है।
रात को सोते समय होने वाली बाधाएँ
नार्कोलेप्सी से पीड़ित लोगों में, रात की नींद, बार-बार जागने, तथा विविधतापूर्ण, भयावह सपनों के कारण समय-समय पर बाधित हो सकती है। इसकी वजह से, नींद गैर ताज़गी भरी होती है, तथा लोगों को तुलनात्मक रूप से कहीं अधिक नींद महसूस होती है।
जटिलताएँ
नार्कोलेप्सी से पीड़ित लोगों को काम करने और ध्यान केन्द्रित करने में कठिनाई होती है। इस बात की अधिक संभावना होती है कि वे खुद को चोट पहुँचा सकते हैं—उदाहरण के लिए वे ड्राइविंग के दौरान सो सकते हैं। नार्कोलेप्सी के कारण तनाव हो सकता है। उत्पादकता तथा प्रेरणा कम हो सकती है, तथा ध्यान केन्द्रित करने में समस्या आ है। लोग दूसरों से दूर रह सकते हैं तथा इस प्रकार व्यक्तिगत रिश्तों को खराब कर सकते हैं। अनेक लोग डिप्रेशन में चले जा सकते हैं।
नार्कोलेप्सी का निदान
पॉलीसोम्नोग्राफ़ी
मल्टीपल नींद लेटेंसी की जांच
डॉक्टरों को उस समय नार्कोलेप्सी का संदेह होता है, जब दिन में अत्यधिक निद्रालु लोगों में मांसपेशी की कमजोरी के एपिसोड्स घटित होते हैं। हालांकि, डॉक्टर केवल लक्षणों के आधार पर निदान को आधारित नहीं कर सकते हैं, क्योंकि दूसरी बीमारियों के कारण भी ऐसे ही लक्षण हो सकते हैं। नींद संबंधी लकवा और समान हैलुसिनेशन कभी-कभी अन्यथा स्वस्थ वयस्कों में भी होते हैं, ऐसे लोगों में जो नींद से वंचित हैं, तथा ऐसे लोगों में ये एपिसोड्स होते हैं जो स्लीप ऐप्निया या डिप्रेशन से पीड़ित हैं। ये लक्षण उस समय भी हो सकते हैं, जब कुछ खास प्रकार की दवाओं का सेवन किया जाता है। इसलिए, स्लीप लेबोरेटरी में जांच बहुत ज़रूरी होती है।
स्लीप लेबोरेटरी में नींद की जांच में निम्नलिखित शामिल होता है
पॉलीसोम्नोग्राफ़ी को रात भर में किया जाता है
अगले दिन मल्टीपल स्लीप लेटेंसी की जांच की जाती है
पॉलीसोम्नोग्राफ़ी को आमतौर पर स्लीप लेबोरेटरी में किया जाता है, जो कि अस्पताल, क्लिनिक, होटल के कमरे या अन्य सुविधा में स्थित हो सकती है, जहाँ पर बिस्तर, बाथरूम और निगरानी करने वाले उपकरण उपलब्ध होते हैं। दिमाग की इलेक्ट्रिकल गतिविधि (इलेक्ट्रोएन्सेफ़ेलोग्राफ़ी या EEG) और साथ ही आँख की गतिविधि को रिकार्ड करने के लिए इलेक्ट्रोड्स को खोपड़ी तथा चेहरे पर पेस्ट किया जाता है। इन इलेक्ट्रोड्स को लगाने में कोई दर्द नहीं होता। रिकॉर्डिंग से डॉक्टर को नींद के चरणों के बारे में जानकारी प्रदान करने में सहायता मिलती है। दिल की धड़कन की दर (इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफ़ी, या ECG), मांसपेशी की गतिविधि (इलेक्ट्रोमायोग्राफ़ी) तथा श्वसन को रिकॉर्ड करने के लिए इलेक्ट्रोड शरीर के अन्य हिस्सों में भी चिपकाए जाते हैं। एक दर्दरहित क्लिप को अंगुली या कान में लगाया जाता है, ताकि खून में ऑक्सीजन स्तरों को रिकॉर्ड किया जा सके। पॉलीसोम्नोग्राफ़ी से सांस लेने से संबंधित बीमारियों का पता लगाया जा सकता है (जैसे ऑब्सट्रक्टिव स्लीप ऐप्निया), सीज़र विकार, नार्कोलेप्सी, आवधिक अंग संचलन विकार, तथा नींद के दौरान असामान्य गतिविधि और व्यवहार (पैरासोम्निया)।
शारीरिक थकान और दिन के समय में बहुत ज़्यादा नींद आने की समस्या के बीच में अंतर करने और नार्कोलेप्सी की जांच करने के लिए मल्टीपल स्लीप लेटेंसी जांच की जाती हैं। लोग स्लीप प्रयोगशाला में दिन बिताते हैं। उन्हें 2-घंटे के अंतराल पर 5 झपकियां लेने का अवसर प्रदान किया जाता है। वे अंधेरे वाले कमरे में लेटते हैं और उन्हें झपकी लेने के लिए कहा जाता है। पॉलीसोम्नोग्राफ़ी को इस परीक्षण के हिस्से के तौर पर प्रयोग किया जाता है, ताकि यह देखा जा सके कि लोग कितनी जल्दी से सोते हैं। जब लोग सो जाते हैं, तो जांच की जाती है और इसका प्रयोग झपकियों के दौरान नींद के चरणों की निगरानी और यह तय करने के लिए किया जाता है कि क्या REM (सपने लेना) नींद घटित होती है। मल्टीपल नींद लेटेंसी की जांच के दौरान, नार्कोलेप्सी से पीड़ित लोग खास तौर पर जल्दी से सो जाते हैं और वे कम से कम 2 REM झपकियां लेते हैं।
इन जांचों में दिमाग, दिल, सांस लेने, मांसपेशियों और आँखों की गतिविधि की निगरानी और रिकॉर्डिंग की जाती है। शरीर के अन्य अनेक कार्य, जिनमें अंगों का संचलन भी शामिल है, उनकी भी निगरानी और रिकॉर्डिंग की जाती है।
आमतौर पर, नार्कोलेप्सी ऐसी असामान्यताओं की वजह से नहीं होती है जिनका पता दिमाग इमेजिंग प्रक्रियाओं जैसे कंप्यूटेड टोमोग्राफ़ी (CT) या मैग्नेटिक रीसोनेंस इमेजिंग (MRI) से किया जा सकता है। हालांकि, डॉक्टर अन्य बीमारियों जिनके कारण दिन के समय में बहुत ज़्यादा नींद महसस होती है, उनकी संभावना को नकारने के लिए दिमाग इमेजिंग और रक्त तथा मूत्र की जांच कर सकते हैं।
नार्कोलेप्सी का उपचार
सामान्य उपाय
वे दवाएँ जिनसे जागते रहने में सहायता मिलती है
नार्कोलेप्सी का कोई इलाज नहीं है। हालांकि, अनेक लोगों के लिए निरन्तर उपचार की वजह से, वे सामान्य जीवन व्यतीत कर पाते हैं।
लोगों को रात को पर्याप्त नींद लेने की भी कोशिश करनी चाहिए और साथ ही, दिन हर रोज़ थोड़ी झपकियां (30 मिनट से कम) लेने की भी कोशिश करनी चाहिए (खासतौर पर दोपहर में)। यदि लक्षण हल्के हैं, तो मात्र इन उपायों की ही आवश्यकता होगी। कैटाप्लेक्सी से पीड़ित लोगों को किसी भी ऐसे चीज़ से बचना चाहिए जिससे कैटाप्लेक्सी उत्प्रेरित होती है, जैसे हंसना, गुस्सा करना या डरना।
दूसरों के लिए, ऐसी दवाएँ जो लोगों को जगाए रखने में मदद करती हैं, जैसे मोडेफ़िनिल, आर्मोडेफ़िनिल, सोलरिएमफ़ेटॉल, पिटोलिसेंट और ऑक्सीबेट्स, का उपयोग नींद को कम करने में मदद के लिए किया जाता है। दवा से उपचार के दौरान, डॉक्टर लोगों की समीपता से निगरानी करते हैं।
मोडेफ़िनिल, आर्मोडेफ़िनिल, सोलरिएमफ़ेटॉल और पिटोलिसेंट मस्तिष्क में अलग-अलग रिसेप्टर्स के साथ परस्पर क्रिया करके लोगों को जागृत अवस्था में रखती हैं। दवाओं को दिन में एक बार सुबह के समय लिया जाता है या शिफ़्ट कामगारों द्वारा अपना काम शुरू करने से एक घंटा पहले लिया जा सकता है। ऐसे लोग जिनको कैटाप्लेक्सी के बिना नार्कोलेप्सी है, उनमें इन 4 दवाओं का इस्तेमाल पसंदीदा उपचार के रूप में किया जाता है। आमतौर पर, ये सभी दवाएँ सुरक्षित हैं, लेकिन इनकी वजह से सिरदर्द, मतली, उलटी करना और चकत्ते हो सकते हैं। गर्भवती महिलाओं को मोडेफ़िनिल का सेवन नहीं करना चाहिए, क्योंकि इसकी वजह से गंभीर जन्मजात समस्या फिर से सामने आ सकती हैं जिनमें दिल संबंधी समस्या भी शामिल है।
ऑक्सीबेट्स (जिन्हें कभी-कभी सोडियम ऑक्सीबेट भी कहा जाता है) आमतौर पर दिन में बहुत ज़्यादा नींद आने और कैटाप्लेक्सी को कम कर सकते हैं। इन दवाओं को सोने के दौरान तथा फिर से रात को लिया जाता है। इन दवाओं का इस्तेमाल नार्कोलेप्सी तथा कैटाप्लेक्सी से पीड़ित लोगों में पसंदीदा उपचार के तौर पर किया जाता है। दुष्प्रभाव में मतली, उलटी करना, चक्कर आना, यूरिनरी इनकॉन्टिनेन्स तथा कभी-कभी नींद में चलना शामिल है।
डेक्ट्रोएम्फ़ेटामाइन (मेथमफ़ेटमीन और डेक्स्ट्रोएम्फ़ेटेमिन सहित) और मेथिलफ़ेनिडेट, जो उत्तेजक हैं, उनका उपयोग केवल तभी किया जाता है जब अन्य नार्कोलेप्सी दवाएँ अप्रभावी होती हैं या सहन न की जा सकने वाली समस्याएं पैदा करती हैं। इन उत्प्रेरकों के कारण उत्तेजना, उच्च ब्लड प्रेशर, तथा हृदय की तीव्र दर तथा मनोदशा में उतार-चढ़ाव हो सकते हैं। इनकी आदत भी पड़ सकती है। इससे पहले कि डॉक्टर 40 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को ये दवाएँ लिखें, हृदय रोग की जांच के लिए एक व्यायाम तनाव परीक्षण किया जाता है।
आइडियोपैथिक हाइपरसोम्निया का उपचार नार्कोलेप्सी के समान है—जिसमें ऐसी दवाएँ दी जाती हैं जो लोगों को जगाए रखने में मदद करती हैं।