एकल-जीन विकारों की वंशागति

इनके द्वाराQuasar S. Padiath, MBBS, PhD, University of Pittsburgh
समीक्षा की गई/बदलाव किया गया जून २०२३

जीन, डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (DNA) के सेगमेंट होते हैं, जिनमें एक खास प्रोटीन का कोड होता है, जो शरीर में एक या इससे ज़्यादा तरह की कोशिकाओं में काम करता है या कार्यात्मक RNA अणुओं के लिए कोड होता है।

क्रोमोसोम DNA के एक बहुत ही लंबे धागे से बने हुए होते हैं और इनमें बहुत से जीन (हजारों से लेकर लाखों तक) होते हैं। कुछ कोशिकाओं को छोड़कर (उदाहरण के लिए शुक्राणु और अंडे की कोशिकाएं), प्रत्येक सामान्य मानवीय कोशिका में क्रोमोसोम के 23 जोड़े होते हैं। इसमें 22 जोड़े नॉनसेक्स (ऑटोसोमल) क्रोमोसोम के और एक जोड़ा सेक्स क्रोमोसोम का होता है, यानी कुल मिलाकर 46 क्रोमोसोम होते हैं। प्रायः, प्रत्येक जोड़े में माता से एक क्रोमोसोम और पिता से एक क्रोमोसोम शामिल होता है।

सेक्स क्रोमोसोम यह निर्धारित करते हैं कि भ्रूण लड़का होगा या लड़की। पुरुष में एक X और एक Y सेक्स क्रोमोसोम होता है। X क्रोमोसोम उसकी माता से आता है और Y क्रोमोसोम उसके पिता से आता है। महिला में दो X क्रोमोसोम होते हैं। एक X क्रोमोसोम उसकी माता से आता है और दूसरा X क्रोमोसोम उसके पिता से आता है।

जीन द्वारा उत्पन्न किए गए लक्षणों (जीन-निर्धारित कोई विशेषता, जैसे आँख का रंग) का इन रूपों में वर्णन किया जा सकता है

  • प्रभावी

  • अप्रभावी

प्रभावी लक्षण तब अभिव्यक्त होते हैं जब उस लक्षण से संबंधित जीन की एक भी प्रतिलिपि उपस्थित होती है।

अप्रभावी लक्षण ऑटोसोमल क्रोमोसोम पर होते हैं और इन्हें केवल तब अभिव्यक्त किया जा सकता है जब इस लक्षण से संबंधित जीन की दो प्रतिलिपियां, क्रोमोसोम के प्रत्येक जोड़े पर उपस्थित होती हैं। जिन लोगों में अप्रभावी लक्षण से संबंधित असामान्य जीन की एक प्रतिलिपि होती है (और इसीलिए उनमें कोई विकार नहीं होता), उन्हें वाहक कहा जाता है।

सहप्रभावी लक्षणों के साथ, जीन की दोनों प्रतिलिपियों को कुछ हद तक अभिव्यक्त किया जाता है। सहप्रभावी लक्षण का एक उदाहरण रक्त प्रकार है। यदि व्यक्ति में रक्त प्रकार A के लिए एक जीन में कोडिंग और रक्त प्रकार B के लिए दूसरे जीन में कोडिंग है, तो उस व्यक्ति में A और B दोनों रक्त प्रकार अभिव्यक्त होते हैं (रक्त प्रकार AB)।

एक X-लिंक्ड (लिंग-सहलग्न) जीन वह होता है जो X क्रोमोसोम पर रहता है। X-लिंकिंग भी अभिव्यक्ति का निर्धारण करती है। पुरुष में, X क्रोमोसोम पर उपस्थित लगभग सभी जीन, चाहे लक्षण प्रभावी हों या अप्रभावी, अभिव्यक्त होते हैं क्योंकि उनकी अभिव्यक्ति को निष्प्रभावी करने के लिए कोई युग्मित जीन नहीं होता।

पेनेट्रेंस और अभिव्यक्तता

पेनेट्रेंस को उन लोगों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है जिन्हें एलील है (किसी जीन का खास रूप उन विविधताओं के लिए जिम्मेदार होता है जिनमें किसी दिए गए ट्रेट को एक्सप्रेस किया जा सकता है) और जिनमें संबंधित फ़ीनोटाइप (ट्रेट) विकसित हो जाते हैं। उदाहरण के लिए, अगर एलील से पीड़ित आधे लोगों में इसका ट्रेट दिखाई देता है, तो इसका पेनेट्रेंस 50% है।

पेनेट्रेंस पूर्ण या अपूर्ण हो सकती है। अपूर्ण पेनेट्रेंस वाला जीन हमेशा अभिव्यक्त नहीं होता यहां तक कि तब भी जब उत्पन्न करने वाला लक्षण प्रभावी होता है या वह लक्षण अप्रभावी होता है और दोनों क्रोमोसोम पर उपस्थित होता है। किसी जीन का पेनेट्रेंस एक से दूसरे व्यक्ति में अलग-अलग हो सकता है और यह व्यक्ति की उम्र पर निर्भर करता है। भले ही कोई खास एलील एक्सप्रेस न हो (नॉन-पेनेट्रेंस), लेकिन एलील का अप्रभावित कैरियर इसे उनके बच्चों में पहुंचा सकता है, जिनमें ट्रेट हो सकता है।

अभिव्यक्तता बताती है कि एक लक्षण किसी एक व्यक्ति को कितना प्रभावित करता है, अर्थात्‌, क्या वह व्यक्ति बहुत अधिक, सामान्य, या हल्का सा ही प्रभावित हुआ है।

जीन लोगों को कैसे प्रभावित करता है: पेनेट्रेंस और अभिव्यक्तता

समान जीन वाले लोग अलग-अलग रूप से प्रभावित हो सकते हैं। इन भिन्नताओं को दो शब्दों से स्पष्ट किया जाता है: पेनेट्रेंस और अभिव्यक्तता।

पेनेट्रेंस का तात्पर्य है कि जीन अभिव्यक्त हुआ है या नहीं। अर्थात्‌, यह दर्शाती है कि इस जीन वाले कितने लोगों में इस जीन से संबंधित लक्षण उपस्थित हैं। यदि जीन वाले प्रत्येक व्यक्ति में वह लक्षण उपस्थित होता है, तो पेनेट्रेंस पूर्ण (100%) माना जाता है। यदि उस जीन वाले केवल कुछ ही लोगों में वह लक्षण होता है, तो पेनेट्रेंस अपूर्ण माना जाता है। उदाहरण के लिए, 50% पेनेट्रेंस का अर्थ है कि उस जीन वाले केवल आधे लोगों में ही उसका लक्षण उपस्थित है।

एक्सप्रेसिविटी का मतलब यह है कि ट्रेट किसी व्यक्ति को कितना प्रभावित करता है (उसमें एक्सप्रेस होता है)। लक्षण बहुत अधिक स्पष्ट, मुश्किल से दिखाई देने योग्य, या इनके बीच का होता है। आनुवंशिक संरचना, हानिकर पदार्थों के संपर्क में आना, अन्य पर्यावरणीय प्रभावों, और आयु सहित विभिन्न कारक अभिव्यक्तता को प्रभावित कर सकते हैं।

पेनेट्रेंस और अभिव्यक्तता दोनों में परिवर्तन हो सकते हैं। जीन वाले लोगों में लक्षण हो भी सकता है और नहीं भी, तथा लक्षण वाले लोगों में, लक्षण अभिव्यक्त होने का तरीका अलग-अलग होता है।

वंशागति के प्रतिरूप

बहुत से आनुवंशिक विकार, खासकर वो विकार जिनमें एकाधिक जीन द्वारा नियंत्रित किए गए लक्षण शामिल हैं या वो विकार जो पर्यावरणीय प्रभावों के प्रति बहुत अधिक संवेदनशील होते हैं, उनमें वंशागति का कोई स्पष्ट प्रतिरूप नहीं होता। हालांकि, कुछ एकल जीन विकार विशिष्ट प्रतिरूपों को दर्शाते हैं, विशेषकर जब पेनेट्रेंस अधिक होता है और अभिव्यक्तता पूर्ण होती है। ऐसी स्थितियों में, प्रतिरूपों का इस आधार पर पता लगाया जा सकता है कि लक्षण प्रभावी है या अप्रभावी, और जीन X-लिंक्ड है या माइटोकॉन्ड्रियल जीनोम पर उपस्थित है या नहीं।

नॉन–X-लिंक्ड (ऑटोसोमल) वंशागति

नॉन-X-लिंक्ड जीन वो जीन होते हैं जो नॉनसेक्स (ऑटोसोमल) क्रोमोसोम के एक या दोनों 22 जोड़ों पर उपस्थित होते हैं।

प्रभावी विकार

किसी प्रभावी नॉन–X-लिंक्ड जीन द्वारा निर्धारित प्रभावी विकारों पर आमतौर पर निम्नलिखित सिद्धांत लागू होते हैं:

  • जब माता-पिता में से किसी एक को यह विकार हो और दूसरे को न हो, तो प्रत्येक बच्चे में वंशागत रूप से यह विकार होने की 50% संभावना होती है।

  • जिन लोगों में यह विकार नहीं होता उनमें आमतौर पर यह जीन उपस्थित नहीं होता और इसीलिए इसका लक्षण आगे उनकी संतान में नहीं जाता।

  • इससे पुरुषों और महिलाओं की समान रूप से प्रभावित होने की संभावना होती है।

  • इस विकार वाले अधिकांश लोगों के माता-पिता में कम से कम किसी एक में यह विकार होता है, यद्यपि हो सकता है कि प्रभावित माता या पिता में यह विकार स्पष्ट न हो और इसका निदान भी न किया गया हो। हालांकि, कभी-कभी यह विकार एक नए आनुवंशिक उत्परिवर्तन के रूप में उत्पन्न होता है।

अप्रभावी विकार

किसी अप्रभावी नॉन–X-लिंक्ड जीन द्वारा निर्धारित अप्रभावी विकारों पर आमतौर पर निम्नलिखित सिद्धांत लागू होते हैं:

  • वस्तुतः इस विकार वाले प्रत्येक व्यक्ति के माता-पिता दोनों में ही असामान्य जीन की एक प्रतिलिपि होती है, यहां तक कि तब भी जब माता-पिता दोनों में से किसी में भी यह विकार नहीं होता है (क्योंकि जीन के अभिव्यक्त होने के लिए असामान्य जीन की दो प्रतिलिपियां चाहिए होती हैं)।

  • एकल उत्परिवर्तन के परिणामस्वरूप प्रभावी रूप से वंशागत विकार होने की तुलना में इस तरह से विकार के होने की संभावना कम होती है (क्योंकि अप्रभावी विकारों में अभिव्यक्ति के लिए यह आवश्यक है कि दोनों जीन की जोड़ी असामान्य हो)।

  • जब माता-पिता में से किसी एक को विकार हो और दूसरे में एक असामान्य जीन हो लेकिन विकार न हो, तो उनके बच्चों में से आधों में विकार होने की संभावना होती है। उनके बाकी बच्चे एक असामान्य जीन के वाहक होंगे।

  • जब माता-पिता में से किसी एक को विकार हो और दूसरे में कोई असामान्य जीन न हो, तो उनके किसी भी बच्चे में विकार नहीं होगा, लेकिन उनके सभी बच्चों को वंशागत रूप से वह असामान्य जीन प्राप्त होगा और वे इसके वाहक होंगे जिससे यह आगे उनकी संतानों में जा सकता है।

  • वह व्यक्ति जिसमें यह विकार नहीं है और जिनके माता-पिता में भी यह विकार नहीं है लेकिन उसके भाई-बहनों में यह विकार है, उसकी इस असामान्य जीन का वाहक होने की 66% संभावना होती है।

  • इससे पुरुषों और महिलाओं की समान रूप से प्रभावित होने की संभावना होती है।

नॉन–X-लिंक्ड (ऑटोसोमल) अप्रभावी विकार

कुछ विकार नॉन–X-लिंक्ड अप्रभावी लक्षण प्रदर्शित करते हैं। विकार होने के लिए, व्यक्ति का आमतौर पर दो असामान्य जीन प्राप्त करना आवश्यक है, माता-पिता दोनों से एक-एक। अगर माता-पिता दोनों में ही एक-एक असामान्य जीन है, तो दोनों में से किसी में भी विकार नहीं होता (वे अप्रभावित रहते हें) लेकिन हर एक की आगे अपने बच्चों में असामान्य जीन देने की 50% संभावना होती है। इसलिए, प्रत्येक बच्चे में

  • वंशागत रूप से दो असामान्य जीन मिलने की (और इसीलिए विकार विकसित होने की) 25% संभावना होती है

  • वंशागत रूप से दो सामान्य जीन मिलने की 25% संभावना होती है

  • वंशागत रूप से एक सामान्य जीन और एक असामान्य जीन मिलने की (लेकिन विकार से अप्रभावित रहने की) 50% संभावना होती है

इसलिए, बच्चो में, विकार विकसित नहीं होने (यानी, वाहक न बनने या एक अप्रभावित वाहक होने) की संभावना 75% है।

X-लिंक्ड वंशागति

X-लिंक्ड जीन वो जीन हैं जो X क्रोमोसोम पर रहते हैं।

प्रभावी x-लिंक्ड विकार

किसी प्रभावी X-लिंक्ड जीन द्वारा निर्धारित प्रभावी विकारों पर आमतौर पर निम्नलिखित सिद्धांत लागू होते हैं:

  • प्रभावित पुरुष अपनी सभी पुत्रियों में इस विकार का संचार करते हैं लेकिन अपनी किसी भी पुत्र में इसका संचार नहीं करते। (प्रभावित पुरुष के पुत्रों को X क्रोमोसोम प्राप्त नहीं होता, उन्हें केवल उसका Y क्रोमोसोम प्राप्त होता है, जिस पर असामान्य जीन उपस्थित नहीं होता।)

  • वो प्रभावित महिलाएं जिनमें केवल एक असामान्य जीन होता है, विकार को, औसतन, अपने आधे बच्चों में, चाहे लिंग जो भी हो, संचारित करती हैं।

  • वो प्रभावित महिलाएं जिनमें दो असामान्य जीन होते हैं, विकार को अपने सभी बच्चों में संचारित करती हैं।

  • प्रभावित पुरुषों में बहुत से X-लिंक्ड प्रभावी विकार मृत्युकारक होते हैं। महिलाओं में, जीन के प्रभावी होने पर भी, अन्य X क्रोमोसोम पर दूसरा सामान्य जीन होना प्रभावी जीन के असर को कम कर देता है, जिससे परिणामस्वरूप होने वाले विकार की गंभीरता कम हो जाती है।

  • यह विकार पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में अधिक होता है। यदि यह विकार पुरुषों में मृत्युकारक है तो लिंगों के बीच यह अंतर और भी अधिक होता है।

प्रभावी X-लिंक्ड वाले गंभीर रोग बहुत कम होते हैं। इसके उदाहरण है फ़ेमिलियल रिकेट (फ़ेमिलियल हाइपोफ़ॉस्फ़ेटेमिक रिकेट्स) और आनुवंशिक नेफ़्राइटिस (अलपोर्ट सिड्रोम)। आनुवंशिक रिकेट से ग्रस्त महिलाओं में प्रभावित पुरुषों की अपेक्षा हड्डी से संबंधित लक्षण कम उत्पन्न होते हैं। आनुवंशिक नेफ़्राइटिस से ग्रस्त महिलाओं में आमतौर पर कोई लक्षण नहीं होते, पर किडनी की कार्यप्रणाली में थोड़ी असामान्यता होती है, जबकि प्रभावित पुरुषों में वयस्क जीवन के आंरभिक समय में गुर्दा विफल होने की समस्या विकसित हो जाती है।

अप्रभावी x-लिंक्ड विकार

किसी अप्रभावी X-लिंक्ड जीन द्वारा निर्धारित अप्रभावी विकारों पर आमतौर पर निम्नलिखित सिद्धांत लागू होते हैं:

  • इस विकार से प्रभावित लगभग सभी लोग पुरुष हैं।

  • प्रभावित पुरुष की सभी पुत्रियां असामान्य जीन की वाहक होती हैं।

  • प्रभावित पुरुष अपने पुत्रों में इस विकार का संचार नहीं करता।

  • इस जीन का वहन करने वाली महिलाओं में यह विकार नही होता है (जब तक कि उनमें दोनों X क्रोमोसोम पर यह असामान्य जीन न हो या अन्य सामान्य क्रोमोसोम की निष्क्रियता न हो)। हालांकि, जिनमें आमतौर पर यह विकार होता है, वे इस जीन को अपने आधे पुत्रों में संचारित करती हैं। उनकी पुत्रियों में, अपनी माता की तरह, यह विकार नहीं होता, लेकिन उनमें से आधी पुत्रियां इसकी वाहक होती हैं।

आम रूप से पाए जाने वाले X-लिंक्ड अप्रभावी लक्षण का एक उदाहरण लाल-हरी वर्णान्धता है, जिससे लगभग 10% पुरुष प्रभावित होते हैं लेकिन यह महिलाओं में शायद ही कभी पाया जाता है। पुरुषों में, वर्णान्धता से संबंधित जीन माता से आते हैं जिनकी नज़र आमतौर पर सामान्य होती है लेकिन वह वर्णान्धता जीन की वाहक होती है। यह कभी भी पिता से प्राप्त नहीं होता, क्यूंकि ये Y क्रोमोसोम प्रदान करते हैं। वर्णान्ध पिताओं की पुत्रियों में शायद ही कभी वर्णान्धता की समस्या होती है लेकिन वे सदैव वर्णान्धता जीन की वाहक होती हैं। एक X-लिंक्ड अप्रभावी जीन के कारण होने वाले गंभीर रोग का एक उदाहरण हीमोफ़िलिया है, एक ऐसा विकार जिसमें अत्यधिक रक्त स्राव होता है।

X-लिंक्ड अप्रभावी विकार

यदि कोई जीन X-लिंक्ड है, तो यह X क्रोमोसोम पर उपस्थित होता है। अप्रभावी X-लिंक्ड विकार आमतौर पर केवल पुरुषों में विकसित होते हैं। यह मात्र-पुरुषों में इसलिए विकसित होता है क्योंकि पुरुषों में केवल एक X क्रोमोसोम होता है, और इस प्रकार असामान्य जीन के प्रभाव को कम करने के लिए कोई युग्मित जीन नहीं होता। महिलाओं में दो X क्रोमोसोम होते हैं, इसलिए उन्हें आमतौर पर दूसरे X क्रोमोसोम पर सामान्य या प्रतिकारक जीन प्राप्त होता है। यह सामान्य या प्रतिकारक जीन आमतौर पर महिलाओं में विकार होने से रोकता है (जब तक कि प्रतिकारक जीन निष्क्रिय नहीं होता या नष्ट नहीं हो जाता)।

यदि पिता में असामान्य X-लिंक्ड जीन (और इसीलिए विकार) होता है और माता में दो सामान्य जीन होते हैं, तो उनकी सभी पुत्रियों को एक असामान्य जीन और एक सामान्य जीन प्राप्त होता है, जो उन्हें वाहक बनाते हैं। उनके किसी भी पुत्र को असामान्य जीन प्राप्त नहीं होता क्योंकि उन्हें पिता का Y क्रोमोसोम प्राप्त होता है।

यदि माता एक वाहक है और पिता में एक सामान्य जीन है, तो किसी भी पुत्र में माता से असामान्य जीन प्राप्त होने की (और विकार विकसित होने की) 50% संभावना होती है। किसी भी बेटी में एक असामान्य जीन और एक सामान्य जीन (कैरियर बनना) मिलने की 50% संभावना होती है या दो सामान्य जीन मिलने की 50% संभावना होती है।

लिंग-सीमित वंशागति

एक लक्षण जो केवल एक लिंग में ही दिखाई देता है, लिंग-सीमित कहलाता है। लिंग-सीमित वंशागति X-लिंक्ड वंशागति से भिन्न होती है। X-लिंक्ड इनहेरिटेंस का मतलब है कि ट्रेट X क्रोमोसोम पर कैरी किए गए हैं। लिंग-सीमित वंशागति, जिसे शायद लिंग-प्रभावित वंशागति कहना सबसे उचित होगा, तब होती है जब पुरुषों और महिलाओं के बीच लक्षण की पेनेट्रेंस और अभिव्यक्तता में अंतर होता है। पेनेट्रेंस और अभिव्यक्तता का यह अंतर पुरुषों और महिलाओं में भिन्न लिंग हार्मोन होने के कारण और अन्य दूसरे कारकों के कारण होता है। उदाहरण के लिए, समय से पहले गंजापन (जिसे पुरुषों में होने वाले गंजेपन के रूप में जाना जाता है) एक नॉन–X-लिंक्ड प्रभावी लक्षण है, लेकिन महिलाओं में कभी-कभार ही ऐसा गंजापन अभिव्यक्त होता है और अगर होता भी है तो आमतौर पर केवल रजोनिवृत्ति के बाद परिलक्षित होता है।

असामान्य माइट्रोकॉन्ड्रियल जीन

माइटोकॉन्ड्रिया कोशिका के अंदर छोटी-छोटी सरंचनाएं होती हैं जो कोशिका को ऊर्जा प्रदान करते हैं। प्रत्येक कोशिका के अंदर बहुत से माइटोकॉन्ड्रिया होते हैं। माइटोकॉन्ड्रिया में अपने स्वयं के क्रोमोसोम होते हैं, जिनमें कुछ ऐसे जीन भी होते हैं जो माइटोकॉन्ड्रियन की कार्यप्रणाली को नियंत्रित करते हैं।

विभिन्न दुर्लभ रोग, माइटोकॉन्ड्रियन के अंदर उपस्थित क्रोमोसोम द्वारा आगे बढ़ने वाले असामान्य जीन के कारण होते हैं। इसका एक उदाहरण है लीबर हेरेडेट्री ऑप्टिक न्यूरोपैथी, जो दोनों आँखों की परिवर्तनशील, लेकिन प्रायः पूर्ण रूप से नज़र की हानि होने का कारण बनता है, यह समस्या आमतौर पर किशोरावस्था के दौरान शुरू हो जाती है। इसका एक अन्य उदाहरण वह विकार है जिसे टाइप 2 डायबिटीज या बघिरता के रूप में जाना जाता है।

चूंकि पिता आमतौर पर माइटोकॉन्ड्रियल DNA को आगे अपने बच्चे में नहीं देता, इसलिए असामान्य माइटोकॉन्ड्रियल जीन द्वारा होने वाले रोग लगभग सदैव माता द्वारा संचारित होते हैं। इसीलिए, प्रभावित माता के सभी बच्चों में वंशागत रूप से असामान्यता प्राप्त होने का जोखिम होता है, लेकिन सामान्यतः प्रभावित पिता के किसी भी बच्चे में इसका जोखिम नहीं होता। हालांकि, सभी माइट्रोकॉन्ड्रियल विकार असामान्य माइटोकॉन्ड्रियल जीन के कारण नहीं होते (कुछ विकार कोशिका नाभिक केंद्रक के कारण होते हैं जो माइटोकॉन्ड्रिया को प्रभावित करते हैं)। इसीलिए, पिता के DNA से कुछ माइट्रोकॉन्ड्रियल विकार हो सकते हैं।

कोशिकाओं के नाभिक केंद्र में उपस्थित DNA के विपरीत, असामान्य माइट्रोकॉन्ड्रियल DNA की मात्रा कभी-कभी पूरे शरीर की प्रत्येक कोशिका में अलग-अलग होती है। इसलिए, किसी शारीरिक कोशिका में असामान्य माइट्रोकॉन्ड्रियल जीन होने का अर्थ यह बिलकुल नहीं है कि अन्य कोशिका में कोई रोग है। यहां तक कि दो लोगों में समान माइट्रोकॉन्ड्रियल जीन असामान्यता होने की संभावना प्रतीत होने पर भी, दोनों व्यक्तियों में रोग की अभिव्यक्तता भिन्न हो सकती है। इस भिन्नता के कारण, ज्ञात या संदिग्ध माइट्रोकॉन्ड्रियल जीन असामान्यताओं से ग्रस्त लोगों के लिए रोग का पूर्वानुमान लगाने का प्रयास करते समय रोग का निदान करना कठिन हो जाता है, जिससे आनुवंशिक परीक्षण और आनुवंशिक काउन्सलिंग करना मुश्किल हो जाता है।